गोमाता के भोजन की व्यवस्था
अच्छे स्वास्थ्य के लिए उचित आहार अनिवार्य है। आहार ही सर्वश्रेष्ठ औषधि है। अपने परिवार और गोमाता के लिए आहार का अत्यंत विचारपूर्वक आयोजन करें।
24 January, 2023 by
गोमाता के भोजन की व्यवस्था
Bansi Gir Gaushala
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  • गोमाता के आहार में कभी भी अचानक बदलाव न करें
    • कोई भी बदलाव धीरे-धीरे ३० दिन के दरम्यान करें, विशेष रूप से जब आप आहार में अनाज या चर्बी (तेल) की मात्रा या प्रकार बदलते हैं।
    • इसका कारण बहुत सरल है। मनुष्यों का पाचन एंजाईमेटिक (enzymatic) और एसिडिक (acidic, कम pH वाला) प्रक्रिया अनुसार होता है जबकि गोमाता का पाचन तंत्र मुख्यतः मित्र कीटाणु आधारित किण्वन प्रक्रिया (फ़र्मेंटेशन, fermentation) अनुसार होता है। वैज्ञानिक भाषा में गोमाता का पाचन तंत्र मनुष्यों के पाचन तंत्र की तुलना में अलकालाइन (कम pH वाला) होता है, और इसमें मित्र कीटाणुओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन कीटाणुओं में शामिल होते हैं मित्र बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ और फंगस। यह कीटाणुओं की अलग-अलग जाति विविध प्रकार के पाचन कार्य करते हैं। चीनी, स्टार्च, फाइबर, प्रोटीन, चर्बी, इत्यादि पचाने के लिए अलग-अलग कीटाणु होते हैं।
    • जब हम अचानक गोमाता का आहार बदल देते हैं, विशेष रूप से आहार में अनाज या चर्बी (तेल) की मात्रा या प्रकार, तो इन कीटाणुओं की अलग-अलग जाति की जनसंख्या और उसके बीच संतुलन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसके परिणाम स्वरूप गोमाता को पाचन संबंधी तकलीफ़ें हो सकती हैं, अफरा चढ़ सकता है और अचानक मृत्यु की संभावना भी उत्पन्न हो सकती है।
    • इसकी जगह जब हम धीरे-धीरे बदलाव करते हैं तो इन कीटाणुओं का संतुलन धीरे-धीरे बदलता है और गोमाता का पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है।
    • यदि आप गोमाता को आज मक्का दे रहे हैं और अगले दिन तुरंत गेहूँ या अन्य अनाज दे दिया तो उससे गोमाता की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाएगी। अगर आपको गोमाता की आहार प्रणाली बदलनी है तो १० से १५ दिन के चक्र के अनुसार आगे बढ़ना चाहिये। ऐसा करने से उनकी पाचन प्रक्रिया धीरे-धीरे बदलाव स्वीकार करेगी।
  • गोमाता को नियमित नीम और अर्जुन जैसी औषधियाँ खिलाते रहिए
    • अगर आप हफ्ते में एक बार १ से १० किलो नीम के पत्ते गोमाता को खिला देते हैं तो कृमि जैसी अधिकतर समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो सकता है।
    • गोमाता के पानी पीने के कुंड में चूने की पुताई करने से उन्हें प्राकृतिक रूप से कैल्शियम उपलब्ध हो सकता है।
    • गोमाता को आहार या उपचार हेतु देने योग्य कुछ औषधियों की सूची हमने इस video के अन्य अध्याय में दी है।

    बंसी गीर गोशाला में गोमाताएं नीम खा रही हैं।

    गोमाता को अर्जुन के पत्तों जैसी औषधियाँ भी नियमित रूप से दी जा सकती हैं।

  • आहार और पानी की मात्रा और प्रकार गोमाता को ही चयन करने दें
    • अर्थात कितना आहार ग्रहण करना है और कितना पानी पीना है यह गोमाता को स्वयं तय करने दें।
    • समय के साथ, यह भी देखते रहिए कि गोमाता को कैसा भोजन अधिक पसंद है। गोमाता अपने शरीर और स्वास्थ्य को हमसे अधिक समझती हैं। मनुष्यों की तरह उन्हें सामान्यतः भोजन का लालच नहीं होता, वह उतना ही खाती है जितना उनके शरीर को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।
    • गोमाता के पानी में आप थोड़ा सा गोमय भस्म डाल सकते हैं। इस से पानी में पोषक क्षार का प्रमाण बढ़ेगा और पानी का पीएच (pH) भी बना रहेगा।
  • संतुलित आहार स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है
    • भारत और लगभग समग्र आधुनिक जगत में अधिकतर गोचर नष्ट हो चुके हैं। यह मनुष्य जाति की वृद्धि और लालच का परिणाम है।
    • इस कारण अकसर गोमाता को अब उस मात्रा और गुणवत्ता का आहार प्राप्त नहीं होता जो उन्हें कुछ दशकों और सदियों पहले प्राप्त होता था। इसीलिए आज उन्हें आहार में उचित दाना और औषधियाँ देना आवश्यक बनता है।
    • यदि फिर भी गोमाता स्वस्थ नहीं रहती तो आधुनिक आहार विज्ञान की सहायता से उनके लिए संतुलित आहार का आयोजन किया जा सकता है। लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि उनका आहार हमेशा उच्च गुणवत्ता वाला और सात्विक हो।


    Prosopis juliflora - गोमाता को विलायती बबूल से दूर रखें

  • गोमाता को विलायती बबूल से दूर रखें
    • अंग्रेजों के समय और फिर १९७० के दशक में सरकार ने ईंधन की लकड़ी के अकाल से निपटने के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में विलायती बबूल लगवाए थे।
    • इस वनस्पति को वैज्ञानिक भाषा में प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा (prosopis juliflora) कहते हैं, गुजराती में “गाँडो बावल” और हिन्दी में “अङ्ग्रेज़ी बबूल”, “विलायती कीकर” और “काबुली कीकर” भी कहते हैं।
    • यह वनस्पति मूल दक्षिण अमरीका की है लेकिन १९५० के बाद भारत के अलावा यह दुनिया के विभिन्न देशों में ले जायी गई थी, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और अफ्रीका।
    • यह वनस्पति मूल दक्षिण अमरीका की है लेकिन १९५० के बाद भारत के अलावा यह दुनिया के विभिन्न देशों में ले जायी गई थी, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और अफ्रीका।
    • इसकी जड़ें तेज़ी से फैलती हैं और ज़मीन से सारा पानी सोख लेती है, जिसकी वजह से इसके आजू-बाजू सभी घास और वनस्पति नष्ट हो जाते हैं।
    • आधुनिक अनुसंधान के अनुसार यह वनस्पति अन्य पशु पक्षियों के लिए भी हानिकारक है। इसके बीज में दिमाग को हानि पहुँचाने वाले केमिकल होते हैं (neuro-toxic alkaloids) जिसे खाकर गोमाता की मृत्यु भी हो सकती है।
    • इसलिए गोमाता को विलायती बबूल से दूर रखने का हर संभव प्रयास करें।
गोमाता के भोजन की व्यवस्था
  • हमने १०० से अधिक प्रकार के घास पर अभ्यास किया है, उसमें से गोमाता को जो चारा पसंद है और जिस में पोषण भी अधिक है, वैसा चारा हमने उगाया है और हमारे यहाँ से यही घास की गांठे किसान और गोपालकों को दी जाती हैं।
  • वैसे ही गो-कृपा अमृतम् भी यहाँ से निःशुल्क दिया जाता है जिसका आप गोचर निर्माण के लिए भी उपयोग कर सकते हैं। हमारे बहुत सारे किसान मित्रों ने अपनी गोमाता का घास उगाने के लिए इस कल्चर का उपयोग किया है और बहुत ही सुंदर परिणाम प्राप्त किए हैं।
  • हमारी गोशाला में हमने गो-कृपा अमृतम् के उपयोग से ९ एकर जमीन में से प्रतिदिन ५ टन नपीयर घास का उत्पादन लिया हैं। इस घास की गुणवत्ता में भी हमने सुधार देखा है।
  • गो-कृपा कृषि से उगाए गए नेपियर घास में रेशे (फाइबर), शक्कर (शुगर) एवं प्रोटीन का प्रमाण साधारण जवारी तथा नेपियर की तुलना में कई अधिक है। गोमाता को सूखा चारा देने की आवश्यकता भी नहीं रहती। गोमाता के स्वास्थ्य और चमक में भी सुधार देखा गया है। यह इतना रसीला है कि गोमाता इसे पूरा ही खा सकती हैं, शाफ कटिंग करके देने की आवश्यकता नहीं होती।
  • इस पुस्तक में और हमारे विडिओ में हम अलग-अलग प्रकार के घास की बात करते हैं। इनमें से कुछ घास ऐसे हैं जो गोमाता कभी भी खा सकती हैं, जैसे कि जींजवा जो गोमाता ५ दिन का भी खा सकती हैं और ५०-१०० दिन का भी खा सकती हैं।
  • लेकिन यदि आप देसी जवारी या मक्का खिलाते हैं तो इसे तैयार होने से पहले खिलाया जाए तो वह नुकसान कर सकता है क्योंकि पूर्ण विकसित होने से पहले इसमें ऑक्सेलेट (oxalate) का प्रमाण अधिक होता है। यह ऑक्सेलेट विष समान होता है जो गोमाता के शरीर से खनिज पदार्थों को शोषित कर लेता है। ऑक्सेलेट वनस्पति जीवों की रक्षात्मक प्रतिक्रिया (defense mechanism) जैसा होता है जो वनस्पति पूर्ण विकसित होने से पहले उसे खानेवाले की पाचन प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करता है।
  • वैसा ही नेपियर के साथ होता है। नेपियर को खिलाने का उचित समय ४५-६० दिन होता है। यदि नेपियर ३० दिन पर ही काट के खिला दिया जाए तो दीर्घ कालीन यह नुकसान कर सकता है। और अगर ६०-७० दिन पुराना खिलाया जाए तो भी फ़ाईबर अधिक होने के कारण नुकसान कर सकता है। और नेपियर के अंदर १०० से अधिक प्रकार हैं। इनमें से कुछ देसी और हाइब्रिड वराइटी लाभकारक हैं लेकिन कुछ वराइटी में ऑक्सेलेट अधिक होने के कारण गोमाता के शरीर से कैल्सीअम और खनिज पदार्थ कम हो जाते हैं।
  • तो यदि आप नेपियर खिलते हैं तो आपको इसकी वराइटी की योग्य परख रखना आवश्यक है। और नेपियर खिलाते समय गोमाता के खुराक में मिनरल्स का प्रमाण बढ़ा देने से खनिज पदार्थों के निकास की समस्या का समाधान हो सकता है।
  • मिनरल्स का प्राकृतिक स्रोत भी हो सकता है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका नॉन-वेज स्रोत ना हो। मिनेरल्स की आपूर्ति प्राकृतिक रूप में अर्जुन, सहजन और कढ़ी पत्ता जैसे पत्तों से भी हो सकता है।
  • तो जो भी घास आप गोमाता को खिलते हैं उसे खिलाने का उचित समय भी समझ लेना आवश्यक है।
  • मित्रों, कितना भोजन ग्रहण करना है उसका निर्णय गोमाता को स्वयं करने दीजिये। एक गोमाता प्रति वर्ष ४ से ५ टन गोबर देती है, जिसे आप गो-कृपा अमृतम् के उपयोग से कंपोस्ट करके उत्तम गुणवत्ता का खाद तैयार कर सकते हैं।
  • गो-कृपा अमृतम् के उपयोग से आप श्रेष्ठ कीट नियंत्रक और रोग नियंत्रक बना सकते हैं। इस तरह आपका केमिकल खाद और कीट नियंत्रक में खर्च शून्य या कम हो जाएगा। बचे हुए पैसों में से कुछ पैसे आप गोमाता के लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था के पीछे खर्च कर सकते हैं।
  • हमारी पुस्तक में हम सहजन, नव ग्रह औषधि और आच्छादन के बारे में चर्चा करते हैं। अगर आप सहजन, अर्जुन, नीम, गिलोय, नवगृह औषधि, इमली जैसे पौधे अपने खेत में उगाएंगे तो इनकी डालियाँ भी आपकी गोमाता के लिए उत्तम, अति पौष्टिक और औषधीय गुणों से युक्त भोजन सिद्ध होगी। इस प्रकार आपका गोमाता के पालन में केल्शियम, कृमिहरण, इत्यादि जैसे खर्च भी बच जाएंगे।

बंसी गीर गोशाला में पोचीयो घास

बंसी गीर गोशाला में जींजवा घास (कटिंग के लिए मीठी वराइटी)

पेरा घास (जहां पानी भरा रहता हो वहाँ उगता है) - चराने और काटने के लिए उपयोगी, इसका स्वाद खारा होता है।

बंसी गीर गोशाला से चाराने के लिए श्रेष्ट घास (२४% प्रोटीन युक्त) की वराइटी

बंसी गीर गोशाला में नेपियर घास

गुजरात में किसान द्वारा किया गया नेपियर घास में तुलनात्मक अभ्यास (बायें दिशा में गो-कृपा अमृतम् का उपयोग किया गया है, और दायें भाग में नहीं किया गया।)

संतुलित आहार का महत्व
  • औद्योगिक डेयरी और विदेशी गाय रखने वाले संतुलित आहार पर भार दे कर अधिक से अधिक दुग्ध प्राप्त करते हैं। लेकिन संभवतः भारत के छोटे किसान और गोपालक इस विषय में कई बार कुछ पीछे रह जाते हैं।
  • परिणाम स्वरूप गोमाता या तो अधिक दूध नहीं दे पाती अथवा अधिक दूध देने के बाद अपने शरीर का वज़न और स्वास्थ्य खो देती हैं। इसके कारण भारत के अनेक हिस्सों में विशेष रूप से देसी नस्ल की गोमाता पुनः माँ बनने में कठिनाई या विविध प्रकार की बीमारियों का शिकार बनती हैं।
  • आज़ादी से पहले गोमाता समृद्ध गोचरों का आनंद उठाती थी। लेकिन आधुनिक काल में गोमाता के अधिकतर गोचर नष्ट हो चुके हैं। इसलिए उन्हें पर्याप्त पोषण मिलने में बहुत कठिनाई होती है। हमारा मानना है कि भारतीय समाज के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है।
  • गोमाता विश्व-माता है जो अपने गव्यों से धरती, वनस्पति, प्राणी और मानव समाज को पोषित करती हैं। इस समस्या का दीर्घ-कालीन समाधान ढूँढना होगा। जब तक ऊंची गुणवत्ता वाले गोचरों का पुनः निर्माण नहीं होता तब तक उनके योग्य पोषण के लिए आपात-कालीन आयोजन करना आवश्यक है।
संतुलित आहार का संचालन – दाना कैसा और कितना होना चाहिए
  • आज के समय में गोचर में दाना और पौष्टिक घास नष्ट होने के कारण गोमाता को दाना देने की आवश्यकता पड़ रही है। गोमाता दूध देती है जिसकी वजह से उन्हें पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। यदि पौष्टिक चारा उपलब्ध हो तो दाने की मात्रा कम कर सकते है।
  • आज के समय में गोमाता को आदर्श दाना देने की जो व्यवस्था है उसमें गोमाता उनकी पसंद और इच्छा अनुसार सूखा और हरा चारा खाने देना चाहिये और गमाण में हमेशा यह उपलब्ध रहना चाहिये। गोमाता को पानी भी उनकी इच्छा अनुसार पीने देना चाहिये तथा उनको बांध कर नहीं रखना चाहिये।
  • वियाण (गर्भवती) गोमाता जो दूध नहीं देती है तथा सवा या डेढ़ साल के ऊपर की गोमाता और नंदी को स्वस्थ रहने के लिए दिन में एक या डेढ़ किलो दाना दे सकते हैं। वियाण (गर्भवती) गोमाता जो दूध देती हैं या दूध देने वाली गोमाता को स्वस्थ रहने के लिए दिन में एक से डेढ़ किलो दाना देना चाहिए तथा बाकी का दाना दूध के प्रति लीटर अनुसार आधी मात्रा में देना चाहिये।
  • उदाहरण के लिए अगर गोमाता १० लीटर दूध देती है तो ५ किलो दाना देना चाहिए और अगर २० लीटर दूध देती है तो १० किलो दाना देना चाहिये। लेकिन सामान्य रूप से हमने देखा है कि गोमाता ७ से ८ किलो दाना खाकर भी २० से २५ लीटर दूध देती है।
  • दाना तैयार करने की भी एक विधि है। आप दाने में २० से २५ प्रतिशत चुनी (जैसे की अरहर, तुवर दाल, मूंग, इत्यादि एसी किसी भी प्रकार के दाल का छिलका) डाल सकते है। चुनी पुरानी नहीं होनी चाहिये क्योंकि उसमें फंगस हो सकती है। आपको स्थानीय रूप से सुलभ चुनी का ही उपयोग करना चाहिये ताकि आप कम खर्च में दाना दे सकें।
  • इसके अलावा २० से २५ प्रतिशत खल (तेल निकालने के बाद जो बाकी रहता है वह) डाल सकते है। उदाहरण के लिए देसी कपास का खल, सरसों का खल, नारियल का खल, चावल का खल (आप स्थानीय रूप से सुलभ खल का उपयोग कर सकते है)। यह खल गर्म प्रकृति का नहीं होना चाहिये।
  • २० से २५ प्रतिशत जौ, गेहूँ का छिलका या दलिया ले सकते है। ५ से २० प्रतिशत मक्के का दलिया (यह दलिया बारीक भी नहीं होना चाहिये और मोटा भी नहीं होना चाहिये।) ले सकते है। हर गोमाता को ३० से ४० ग्राम तक नमक की आवश्यकता रहती है। प्राकृतिक सेंधा नमक, काला नमक या समंदर का बड़ा नमक भी दे सकते है, लेकिन साधारण प्रोसेसड़ आयोड़ाइज्ड नमक ना दें।
  • १०० से २०० ग्राम तक देसी गुड़ दे सकते है। ताजा वियाण गोमाता को सीधा कच्चा गुड़ दे सकते है, यह गोमाता के गर्भाशय को साफ करने में सहायक होता है। अगर गोमाता को गाभीण करना हे तो ४ से ६ घंटे तक गुड़ को पानी में भिगो कर रखें, भिगोने के बाद गुड़ की प्रकृति ठंडी हो जाती है। भिगोया हुआ गुड़ एक गोमाता को १०० से २०० तथा ५०० ग्राम तक भी दे सकता है, गो गोमाता का दूध और शरीर के माप के आधार पर गोमाता को नियमित रूप से गुड़ देने से गुड़ में उपलब्ध मिनरलस और अन्य पोषक तत्वों की वजह से उनमें ऊर्जा भी बनी रहेगी।
  • गोमाता के लिए जौ बहुत लाभदायक है, लेकिन गोमाता को कच्चा जौ देने से उसकी फांस से उन्हें गले में तकलीफ हो सकती है। इसलिए उन्हें जौ थोड़ा पकाकर देना ही उचित है। गेहूँ के भडके की जगह आप जवार का भडका का भी उपयोग कर सकते है या आपके स्थानिक विस्तार के अनुसार आप उस अन्न का उपयोग कर सकते है। ध्यान रहे कि गोमाता को कभी भी चावल पकाकर नहीं देना चाहिये, क्योंकि इससे उन्हें अफरा (पेट में अत्यधिक वायु) की समस्या हो सकती है।
गोमाता के आहार हेतु खेत में ही कुछ उपयोगी समाधान
  • खेत के किनारे या बीच में सहजन का पेड़ लगा दें और गोमाता को उसकी डालियाँ तथा पत्ते खिला दें। सहजन में बड़ी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं।
  • पानी के हवाड़े में हर दो दिन चूने की पुताई कर दें ताकि गो गोमाता को प्राकृतिक रूप से कैल्शियम मिलता रहे।
  • आप अपने खेत के किनारे अर्जुन का वृक्ष भी लगा सकते हैं। अर्जुन के पत्तों से भी गो गोमाता को कैल्शियम मिल सकता है। अर्जुन के पत्ते खाने के बाद उनका दूध हृदय के लिए सर्वश्रेष्ठ औषधि सदृश बन जाएगा।
  • अपने खेत में नीम का पेड़ लगा दें और गोमाता को हफ्ते में एक बार नीम के पत्ते खिलाएँ। गोमाता १ से १० किलो नीम के पत्ते खा सकती है जिससे उनको पेट में कृमि की समस्या से राहत होगी। यह अनेक प्रकार के लाभ प्रदान करता है। लेकिन नीम प्रतिदिन भी नहीं देना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से उनके प्रजनन तंत्र के स्वास्थ्य और उर्वरता पर विपरीत असर पड़ सकता है।
  • अनेक ऐसे वृक्ष हैं जिसको आसपास लगाने से वह अनेक लाभ प्रदान करते हैं जैसे कि शमी का वृक्ष। शमी के पत्तों से फैट की मात्रा बढ़ती है, गुणवत्ता भी बढ़ती है और वह उनके स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है।
  • हफ्ते में एक बार बरगद के पांच पत्ते खिला सकते है जो गर्भस्थापन से लेकर अन्य लाभ प्रदान करता है।
गोमाता के आहार और उपचार हेतु उपयोगी ऐसी कुछ औषधियाँ

    हमारी गोशाला में दाने के साथ देने के लिए या उपचार हेतु उपयोग में ली जाने वाली कुछ औषधियों की सूची हम नीचे दे रहे हैं। इन औषधियों का सावधानी पूर्वक वैद्य के परामर्श अनुसार उपयोग करें।

    इन औषधियों के साथ हम इनके वैज्ञानिक नाम (botanical name) भी दे रहे हैं जिसके उपयोग से आप इन औषधियों के अपनी भाषा में प्रादेशिक नाम इंटरनेट से सरलता से प्राप्त कर सकते हैं। इनमें से कुछ का अधिक वर्णन अगले खंड में दिया गया है।

दूध बढ़ाने में उपयोगी ऐसी कुछ औषधियाँ - इन्हें घी में पका कर गौमाता को खिलाने से अधिक अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। अपनी गौमाता को देने की मात्रा और विधि वैद्य के परमर्श अनुसार सुनिश्चित करें।

प्रसूति के १५ दिनों से अंदर गौमाता को दी जाने वाली औषधियाँ - इनमें से कोई भी पाँच औषधि २० ग्राम की मात्रा में २००-४०० ग्राम गुड के साथ पानी में उबाल कर ठंडा होने के बाद गोमाता को दाने के साथ देने से गर्भाशय को साफ होने में सहायता मिलती है। अगर आप के पास पाँच से अधिक औषधियाँ उपलब्ध हैं तो हर औषधि १०-१५ ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं ताकि सभी औषधियों की कुल मात्रा १०० ग्राम जितनी हो। वैद्य के परामर्श अनुसार उपयोग करें।

गोमाता के भोजन की व्यवस्था
Bansi Gir Gaushala 24 January, 2023
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