2023
Add your custom text here
दोहन प्रथा
दोहन एक प्राचीन वैदिक प्रथा है जहां बछड़े को दो आँचल से अपनी संतुष्टि से दूध पीने की स्वतंत्रता होती है, और शेष दो आँचल अन्य जीवित प्राणियों के लिए दूध प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
25 January, 2023 by
दोहन प्रथा
IT - Raj
| No comments yet
दोहन क्या है? एक संक्षिप्त इतिहास…
  • दोहन एक प्राचीन वैदिक प्रथा है जहां बछड़े को दो आँचल से अपनी संतुष्टि से दूध पीने की स्वतंत्रता होती है, और शेष दो आँचल अन्य जीवित प्राणियों के लिए दूध प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  • इस प्राचीन प्रथा का भारत में निष्ठापूर्वक पालन होता था। किन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया, विशेष रूप से भारत की विदेशी शासकों से स्वतंत्रता के पश्चात किसानों की आय दबाव में आ गई।
  • बढ़ते शहरी-करण, बढ़ती ग्रामीण आबादी और देशी और स्थानीय घास की किस्मों के संरक्षण पर कम ध्यान दिए जाने के कारण गोमाता के लिए खुले और समृद्ध गोचर दुर्लभ हो गए।
  • गोचर नष्ट होने के पीछे का एक महत्वपूर्ण कारण १९५० के बाद हुआ विलायती बबूल (prosopis juliflora) का फैलाव भी है।
  • इसकी जड़ें तेज़ी से फैलती हैं और ज़मीन से सारा पानी सोख लेती है, जिसकी वजह से इसके आजू-बाजू सभी घास और वनस्पति नष्ट हो जाते हैं।
  • आधुनिक अनुसंधान के अनुसार यह वनस्पति अन्य पशु पक्षियों के लिए भी हानिकारक है। इस वनस्पति का अधिक वर्णन हमने गो-चिकित्सा के अध्याय में दिया है।
  • आधुनिक विज्ञान और विदेशी विचारों से प्रभावित होकर ग्रामीण जीवन एवं कृषि से जुड़ी गतिविधियां गोपालन एवं डेरी उद्योग से अलग होते गए।
  • इन सब के परिणाम स्वरूप, किसानों ने अपनी गोमाता के पालन हेतु बाहर से दाना और चारा खरीदना आरंभ किया।
  • कभी हताशा तो कभी लालच से प्रेरित होकर किसान और गोपालक धीरे-धीरे 'दोहन' की प्रथा को भूलने लगे और ३ या ४ आंचलों से दूध निकालना शुरू कर दिया।
  • सदियों से चली आ रही इस प्रथा का महत्व धीरे-धीरे कम होता गया।
  • डेरी उद्योग में आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के आगमन के साथ, 'दोहन' में शामिल पारंपरिक मानव-गोमाता स्पर्श दूध प्राप्त करने वाली मशीनों से और कम हो गया।
  • गोमाता ने धीरे-धीरे माँ के रूप में अपनी स्थिति खो दी, क्योंकि वैज्ञानिक 'नवाचारों' के हस्तक्षेप ने उनकी स्वतंत्रता में और हस्तक्षेप किया - वे हस्तक्षेप जो प्रजनन को प्रोत्साहित करने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए बनाए गए थे।
  • आज, शहरी उपभोक्ता गोमाता की स्थिति के बारे में बड़े पैमाने पर अनजान हैं, और साथ ही अपने स्वयं के जीवन और स्वास्थ्य पर इसके नैतिक, आध्यात्मिक और साथ ही व्यावहारिक परिणामों से भी अज्ञान हैं।
गोमाता के साथ हमारे संबंधों में 'दोहन' इतना महत्वपूर्ण क्यों है? व्यवहारिक दृष्टिकोण

बंसी गीर गोशाला जैसे सामाजिक संगठन और कई अग्रणी गो-सेवक दोहन की प्रथा को पुनः उजागर करने के प्रयास कर रहे हैं।

जब लोग बहुत सीमित दृष्टिकोण रखते हैं, तो सबसे व्यावहारिक प्रश्न जो प्रायः उठता है वह यह है - क्या 'दोहन' से हमें प्राप्त दूध का “उत्पादन” कम नहीं हो जाता?

क्या उसकी वजह से किसानों का मुनाफ़ा कम नहीं होता? अपनी तो इन प्रश्नों का उत्तर हम व्यावहारिक दृष्टिकोण से कुछ इस तरह देते हैं -

  • सशक्त नस्ल – जब 'दोहन' के सिद्धान्त का पालन किया जाता है, तो यह नस्ल को मजबूत करता है क्योंकि बछड़े वयस्क होने पर स्वस्थ होते हैं।
  • गोमाता अधिक समय तक दूध देती है – दोहन के कारण गोमाता अधिक समय तक दूध दे सकती है जब वह जानती है कि उसका बछड़ा अभी भी उनके दूध का सेवन कर रहा है। जब मनुष्यों के लिए अधिक दूध प्राप्त करने के लिए बछड़ों को माता से शीघ्र दूर कर दिया जाता है, तो गाय का दूध भी जल्दी सूख जाता है और हमें दूध कम मिलता है। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे मनुष्यों में होता है। मनुष्यों में जब बच्चे का ६ महीने में दूध छुड़ा दिया जाता है तब माता का दूध भी ६ महीने में सुख जाता है, और अगर यह प्रक्रिया १८ महीने तक चले तो १८ महीने के बाद सूखता है। हमने बिल्कुल वैसा ही गोमाता के साथ भी होते हुए देखा है। हमारी गोशाला में गोमाता ९-१० महीने तक भी दूध देती है जबकि सामान्यतः गोमाता जिनका बछड़ा दूध नहीं पीता वह लगभग ६ महीने में दूध देना बंध कर देती है।
  • बछड़ों की परिपक्वता – यह देखा गया है कि जो बछड़े 'दोहन' की प्रक्रिया के तहत अपनी माता का दूध पीते हैं, वे साधारण डेरी बछड़ों की तुलना में कम आयु में परिपक्व होकर माता या पिता बनने योग्य हो जाते हैं। उदाहरण स्वरूप सामान्यतः बछड़ियाँ ३ से ४ साल की आयु में माँ बनती हैं। लेकिन हमारी गोशाला में जहां वह अपनी माँ का दूध पीती हैं बछड़ियाँ २ से २.५ साल की उम्र में ही माँ बन जाती हैं।
कैसे 'दोहन' दूध की गुणवत्ता और स्वास्थ्य वर्धक गुणों को प्रभावित करता है
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण - स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, 'दोहन' के ऐसे लाभ हैं जो केवल उपरोक्त गोपालन से जुड़े व्यावहारिक पहलुओं तक ही सीमित नहीं हैं। गोमाता संतुष्ट होती हैं जब वह जानती हैं कि बछड़े ने अच्छी तरह से दूध पिया है। यह उनके शरीर में तनाव से जुड़े हार्मोन की आवश्यकता को कम या समाप्त करता है, और परिणामस्वरूप जो दूध मिलता है वह दूसरे गोमाता के दूध की तुलना में अधिक लाभकारक होता है जो गोमाता चिंतित हैं कि उनके बछड़े को अच्छी तरह से दूध नहीं मिला। कुछ पोषण विशेषज्ञों ऐसा भी मानते हैं कि तनाव से प्रभावित गोमाता के दूध का सेवन करने के कारण कई लोगों में उच्च रक्तचाप (बी.पी.) और हार्मोनल समस्याओं का उद्भव होता है। विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चलता है कि गोमाता अपनी संतानों और अपने आसपास अन्य गोमाताओं से भावनात्मक रूप से जुड़ी होती हैं। जब उनके बछड़ों को दूध पिलाने की अवधि के दौरान उनसे दूर ले जाया जाता है तो उनके दिल की धड़कन और तनाव के हार्मोन का स्तर प्रभावित होता है। जब 'दोहन' का पालन किया जाता है, तो गोमाता को शांति, प्रेम और संतुष्टि का अनुभव होता है। यही नहीं वह अपने देखभाल करनेवालों या गोपालकों के साथ भी अधिक स्नेह का बंधन बनाने में सक्षम हो जाती हैं।
  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण– हमारे शास्त्र कहते हैं कि जैसी गोमाता की स्थिति वैसी ही हम मनुष्यों की स्थिति। अगर गोमाता और उनका बछड़ा संतुष्ट होगा तो हमारे परिवार और मानव जीवन में भी सुख और आनंद का संचार होगा। दोहन प्रक्रिया से प्राप्त हुआ दूध स्वास्थ्य में सुधार करता है और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से अत्यंत पवित्र और लाभकारक है। यह प्रथा गोमाता के अन्य 'पंचगव्य' उत्पादों’ को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
दोहन कैसे करना चाहिए?
  • दोहन शांत और सकारात्मक वातावरण में होना चाहिए। इस प्रक्रिया के समय बछड़े की उपस्थिति से गोमाता को संतुष्टि और प्रसन्नता का अनुभव होता है।
  • इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें तो दोहन के समय गोमाता के मस्तिष्क से उनके रक्त में ऑक्सीटोसिन (oxytocin) नामक हार्मोन छोड़ जाता है जो उन्हें दूध छोड़ने में सहायक होता है।
  • ऑक्सीटोसिन गोमाता को सुख और संतुष्टि की अनुभूति कराता है, और उनकी प्रजनन क्षमता और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हार्मोन है।
  • अगर यह कृत्रिम रूप से दिया जाए तो गोमाता और मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है।
  • लेकिन जब यह प्राकृतिक रूप से उनके शरीर में छूटता है तो यह बहुत कल्याणकारी तत्व है।
  • गोमाता के आँचल पर हल्का सा पानी छिड़कने के बाद या तो उनके बछड़े द्वारा दूध पीना आरंभ होने के बाद यह हार्मोन की मात्रा लगभग ३० से ६० सेकंड में सबसे अधिक हो जाती है।
  • अगर इसके पहले दूध दोहना शुरू किया जाए तो संभवतः दूध की मात्रा कम आती है। लेकिन अगर पानी छिड़कने के या तो बछड़े द्वारा दूध पीना आरंभ होने के ५० से ६० सेकंड बाद दोहना आरंभ किया जाए तो अधिक दूध प्राप्त हो सकता है।
  • यह हार्मोन अगले ३-५ मिनट तक अधिक मात्रा में रहता है जिस समय दोहन करने से अधिक दूध प्राप्त हो सकता है, जिसके बाद इसका स्तर कम हो जाता है।
  • दोहन के समय गोमाता को शांत और प्रसन्न रखना आवश्यक है। इस हेतु उन्हें थोड़ा स गुड या उनके पसंद का दाना या चारा देना भी उचित है।
  • बछड़ा उनके साथ होने से और उसके दो आँचल से दूध पीने से भी गोमाता संतुष्टि का अनुभव करती हैं।
दोहन - प्रसूति से १५ दिनों तक खास खयाल रखें
  • अधिक दूध देने वाली गोमाता के बछड़े के जनम के बाद दोहन आरंभ करने से पहले विशेष सावधानी रखना आवश्यक है। हमने प्रायः देखा है कि नवजात बछड़े को भूख की समझ कम होती है और अकसर वह अपनी क्षुधा से अधिक दूध पी कर बीमार हो जाता है, और इस से उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
  • इसीलिए अधिक दूध देने वाली गोमाता के नवजात बछड़े को हमेशा प्रारंभ में एक चौथाई से एक आधा आँचल का दूध पीने दें और धीरे-धीरे २५ दिनों में दो आँचल से दूध पीने दें। इस से आप नवजात बछड़े के स्वास्थ्य को सुरक्षित कर सकते हैं।
दोहन प्रथा
IT - Raj
25 January, 2023
Share this post
Archive
Sign in to leave a comment