
भारत के यशस्वी अतीत को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास
बंसी गीर गौशाला की स्थापना इ.स. २००६ में भारत की प्राचीन वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में श्री गोपालभाई सुतरिया द्वारा की गई थी। वैदिक परंपराओं में, गाय को दिव्य माता, गोमाता या गौमाता के रूप में देखा जाता था, जो स्वास्थ्य, ज्ञान और समृद्धि के आशीर्वाद से मानव-जीवन को पोषित करती हैं। ‘गावो विश्वस्य मातरः’ अर्थात् गाय विश्व की माता है।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और मानवता ने कलियुग में प्रवेश किया, इस ज्ञान का अधिकांश हिस्सा खो गया। आधुनिक समय में, गौमाता मानव लालच का शिकार हो गई है। आज भारतीय समाज में गोसेवा का स्थान मात्र एक पशुपालन क्रिया के कार्य में परिवर्तित हो गया है। यहाँ तक की, अन्य पवित्र और दिव्य कार्यों की तरह, गोमाता का पालन भी आज मात्र एक उद्योग बन के रह गया है। शास्त्रों के अनुसार, हमारी यात्रा नर से नारायण तक की है। लेकिन, आज की वास्तविकता देख कर ऐसा प्रतीत होता है की मनुष्य मनुष्यता से ही निचे गीर रहा है। विज्ञान ने दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए नई अमानवीय तकनीकों का आविष्कार किया है, जो गौमाता और उनके परिवार पर अमानवीय पीड़ा का कारण बना है।
यद्यपि गौमाता के प्रति समाज की चिंतनशैली के बदलाव ने भारत और दुनिया के लिए विनाशकारी परिणाम दिए हैं, जिससे पर्यावरण में असंतुलन और बीमारियों की संख्या बढ़ गई है। इन समस्याओं का आधुनिक विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं है।
हम मानते हैं कि दुनिया की समस्याओं का समाधान बाह्य (भौतिक) और आंतरिक (आध्यात्मिक) दोनों है। हमें ‘गौमाता’ को वैदिक मूल्यों के अनुरूप उनकी मूल उत्कृष्ट स्थिति में पुनःस्थापित करने की आवश्यकता है। उनके आशीर्वाद के साथ, बंसी गीर गौशाला भारत की प्राचीन वैदिक ‘गोसंस्कृति’ को पुनर्जीवित करने के लिए एक जीवित प्रयोगशाला के रूप में काम कर रही है, और आधुनिक जीवन के सभी पहलुओं में वैदिक प्रतिमानों का परीक्षण करती है, चाहे वह पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि या व्यवसाय ही क्यों न हो।


हमारे संस्थापक - श्री गोपालभाई सुतरिया
श्री गोपालभाई सुतरिया बंसी गीर गौशाला के संस्थापक हैं। गोपालभाई का जन्म १९७७ में भावनगर (गुजरात) में हुआ था। अपने आध्यात्मिक गुरुजी श्री परमहंस हंसानंदतीर्थ दंडीस्वामी के प्रभाव में, अपने जीवन में प्रारंभिक समय से वह राष्ट्र और मानवता की सेवा करने के लिए जीवन बिताने के अभिलाषी थे। वयस्कता में उन्होंने मुंबई में पारिवारिक व्यवसाय सफलतापूर्वक संभाला। लेकिन वह अपने बचपन के सपनो को याद करते रहे। अंत में वह इ.स. २००६ में अहमदाबाद आए और बंसी गीर गौशाला की स्थापना की। अगले बारह वर्षों में उन्होंने गीर गौमाता के १८ गोत्रों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया, और उन्हें गौशाला में एकत्र किया।
आज बंसी गीर गौशाला में ७०० से अधिक गीर गौमाता और नंदी हैं। गोपालभाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप, बंसी गीर गौशाला गोपालन और गोकृषि के क्षेत्र में एक आदर्श बन गई है। ‘स्वस्थ नागरिक, स्वस्थ परिवार, स्वस्थ भारत’ के उद्देश्य से, बंसी गीर गौशाला आयुर्वैदिक उपचार के क्षेत्र में प्रभावशाली अनुसंधान और निर्माण का कार्य भी कर रही है।
हर साल गौभक्त, संत, आयुर्वेद विशेषज्ञ, आम जनता और गोपालन के क्षेत्र में काम करने वाले लोग और किसान सहित अनेक लोग गोपालभाई से मिलने या ज्ञान का आदान-प्रदान करने के लिए गौशाला में आते हैं। गोपालभाई दृढ़ता से मानते हैं कि भारत में किसान स्थानीय गौमाता की नस्लों को अपनाकर और नैतिकता के साथ ‘दोहन’ की प्राचीन भारतीय प्रथा का उपयोग करके अपने स्वास्थ्य और समृद्धि को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। वह प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में सक्रिय है।
